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जिसके दिमाग में भूसा भरा हो

बढ़ते कदम
बढ़ते कदम
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पहली बात तो आपको ध्यान दिला दूं..कि मैं कोई गुमनाम नहीं…मेरा नाम शिप्रा पाराशर है….कमेंट का तो मुझे नहीं पता…शायद यह जंक्शन की प्रोब्लेम है…कल आपके पोस्ट पर भी कमेंट न जाने के कारण इसे मुझे अपने पोस्ट में शामिल करना पड़ा…और आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मैं जागरण जंक्शन मंच पर पिछले 6 माह से रजिस्टर्ड हूं…यह और बात है कि समय की कमी के कारण ब्लॉग पर कोई पोस्ट नहीं डाल सकी थी…संयोग कहें या मेरा अहोभाग्य…आपका जवाब ही मेरा पहला ब्लॉग पोस्ट बन गया है…और अब दूसरा भी…क्योंकि कमेंट पोस्ट में हाइलाइटेड शब्द आप देख नहीं पाएंगे…शुक्रिया तो मैं क्या कहूं…आगे….


यहां मैं अपनी तरफ से कोई कहावत नहीं कह रही..आपके ही ब्लॉग पर आपके ही द्वारा उपयोग किया ‘खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे’ इस्तेमाल करना एकदम सही लग रहा है. शायद आपने मेरा जवाबी ब्लॉग ध्यान से नहीं पढ़ा या शायद उसे पढ़कर आपके दिमाग के अंदर भरे भूसे में आग लग गई है कि आप ऐसी बेतुकी बातें कर रहे हैं. बेसिर-पैर की बातें कौन कह रहा है यह तो आपको भी पता होगा…आप अपनी इन लाइनों को एक बार फिर ध्यान से पढ़िए…आप खुद ही समझ जाएंगे कि यह आपकी किस मानसिक अवस्था का आभास कराती है.


तो आप महिला हैं…पक्का..या ये भी मानना ही पड़ेगा…??? चलिए ये भी मान लेता हूँ…लेकिन मैं आप को पूर्ण-स्त्री नहीं मान सकता हूँ, उम्म्म क्या करें….क्या करें…हाँ…एक काम करता हूँ, आपको मैं एक ऐसी स्त्री मान लेता हूँ जिसका चित्त पुरुषों जैसा है…ये सही रहेगा…!!!

भाई आपकी यह थीसिस क्या है हमें समझ नहीं आई. खैर यह आपकी किसी मानसिक अवस्था का आभास कराती है….

कहीं ऐसा तो नहीं कि आपको ‘बेसिर-पैर की बातों’ का अर्थ ही पता नहीं..उफ्फ..तब तो वैसे भी कुछ नहीं कह सकते…


आप कह रही हैं तो झूठ थोड़े न कह रही होंगी

मैं आपके पीछे घटी किसी घटना का वर्णन नहीं कर रही कि झूठ या सच बताउंगी..और आप मुझपर विश्वास दिखाकर इसे सच मानने का एहसान जता रहे हैं. भाई जब विचारों की बात आती है तो केवल ‘सही और गलत’ हो सकता है..’झूठ या सच’ नहीं! खैर…आपसे अपेक्षित हो सकता है यह सब…


अपनी खुली आँखों से जो पहली चीज मैं देख रहा हूँ वो ये है कि न तो आप महिला हैं और न ही कोई ब्लॉगर, सेकंड थिंग- आपकी समझदानी बहुत छोटी है..सच कह रहा हूँ, मैं आपके दिमाग के अंदर देख सकता हूँ सब खली है…वहाँ कुछ भी नहीं है…हो सके तो इसमें थोडा भूसा बार लीजिये क्योंकि खाली मन शैतान का घर होता है, सुना तो होगा ही आपने ये कहावत !!

हे अंतर्यामी! यह तो मैंने कल ही मान लिया था कि आप अंतर्यामी हैं…फिर भी मेरी उस उक्ति के स्पष्टीकरण के लिए धन्यवाद!

पहली बात के लिए भी भाई मेरे…क्या कहूं…मेरा पहला जवाब दुबारा कहना चाहूंगी..( भाई आपकी यह थीसिस क्या है हमें समझ नहीं आई. खैर यह आपकी किसी मानसिक अवस्था का आभास कराती है.)

अन्य बातों के बारे में भी क्या कहूं… मेरे ब्लॉग पर जो कुछ लिखा था कल, आपने शायद उसे ध्यान से पढ़ा ही नहीं…या शायद यह सब आप ‘अपने विषय में लिखना चाहते होंगे…पर लिख न सके होंगे तो यहां पेस्ट कर दिया..


और ये क्या उलूल-जुलूल बच्चों जैसी पोस्ट लिखा है आपने, न इस पोस्ट का कोई सिर है न ही पैर है…

छोटी समझ में अक्सर बड़ी बातें समझ नहीं आतीं..कोई बात नहीं हमें आपकी अवस्था का भान है.


…’What a joke..!!! Are you alright or have become senseless…????

If I am answering you..I can’t say that I’m alright Mr. Sufi Dhyan Muhammad…But I wanted to ask you the same question… ’What a joke..!!! Are you alright or have become senseless…????


ऐसा अनर्गल, बेतुका, बेहूदा, बेमतलब का पोस्ट मैं ने आज तक नहीं पढ़ा था..!

यह भी शायद अपने ही पोस्ट के लिए कहना चाहते होंगे…अक्सर हम जिन बातों को अपने लिए स्वीकार नहीं कर पाते, किसी से संबद्ध कर बोल देते हैं…कोई बात नहीं हम समझ सकते हैं.


आप अगर मुझे से तार्किक और सांगत जवाब की अपेक्षा करती हैं तो सब से पहले अपनी पहचान को सार्वजानिक कीजिये और फिर मुझ से बात कीजिये..!!! नमुनागिरी मुझे पसंद है लेकिन इससे ज्यादा नहीं…!!!

सूफी जी…सूफी जी…सूफी जी…पहली बार आपकी किसी बात से सहमत हूं ..नमूनागिरी मुझे पसंद है लेकिन इससे ज्यादा नहीं…भाई मेरे, इतना समय लगा टाइप करने में..आपके बहुमूल्य सवालों के जवाब देने में…और आपने उसे ध्यान से पढ़ा नहीं!…यह उम्मीद तो वाकई नहीं थी आपसे..

किस तरह समझाऊं कि मुझे आपसे तार्किक बातों और तर्कसंगत जवाबों की अपेक्षा नहीं है….आपके ब्लॉग पर इमाम हुसैन क़ादरी जी का कमेंट पढ़ा था…उसके कुछ शब्द उपयोग करना चाहूंगी…..ध्यान जी…किस ध्यान में हैं….और कहना चाहूंगी…

ध्यान जी…किस ध्यान में हैं!…एक बार ध्यान से मेरा जवाब तो पढ़ लिया होता!…फिर ‘तार्किक और तर्कसंगत जवाबों की अपेक्षा’ का सवाल करते…


सब आपकी महान लेख पर हंस रहे हैं….!!! समझ तो तुम गए ही होगे!”

एक ही बात बार-बार दुहराना अच्छा तो नहीं लग रहा लेकिन क्या करूं…इसलिए फिर से कहना चाहूंगी…

यह भी शायद अपने ही पोस्ट के लिए कहना चाहते होंगे…अक्सर हम जिन बातों को अपने लिए स्वीकार नहीं कर पाते, किसी से संबद्ध कर बोल देते हैं…कोई बात नहीं हम समझ सकते हैं..जहां तक आपका सवाल है… समझ तो तुम गए ही होगे!

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