Menu
blogid : 14893 postid : 647843

सूफी ध्यान मुहम्मद जी ने नाम बदल लिया – १

बढ़ते कदम
बढ़ते कदम
  • 7 Posts
  • 24 Comments

(1)

आपने अपना नाम कब से बदल लिया? मुझे तो पता था कि आपका नाम ‘सूफी ध्यान मुहम्मद’ है!! शिप्रा पाराशर कब से हो गया?खैर..थोड़ा अजीब है लेकिन अपने नाम का कोई और भी देखकर अच्छा लग रहा है…बस ये लड़कियों वाले नाम का एक लड़का देखना बहुत अजीब है….पर कोई नहीं…नाम तो नाम है….


अब मुद्दे पर आते हैं..

आपको क्या लगता है महानुभाव, मजे लेना सिर्फ आपको ही आता है..’ध्यान रहित’ सूफी ध्यान मुहम्मद जी, यह तो आपको मेरे पहले ब्लॉग से ही समझ जाना चाहिए था कि उसके बाद मैं जो भी जवाब दूंगी, बस मजे लेने के लिए. क्योंकि आपके ब्लॉग को प्रतिक्रिया (‘प्रतिक्रिया’ के संबंध में आपके विचारों पर हमारे विचार समझाना ही बेवकूफी है) देने लायक तो मैं यूं भी नहीं समझती. फिर भी जवाब (आपके शब्दों में) दिया…ताकि आपको आपकी वास्तविक जगह (भले ही ‘खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे’ को आप चरितार्थ करें और इसे न मानें..और समझकर भी आप नहीं समझें…फिर भी) समझा सकूं. पर उसका जवाब (आपकी तरफ से) तो मैं मजे लेने के लिए ही चाहती थी. वैसे ही जैसे ‘स्वान’ को छोटा पत्थर उठाकर मार दो..और वह आवाजें करता रहेगा..लोग यह सब मजे लेने के लिए ही तो करते हैं! मैं भी वही करती हूं… मुझे लगा शायद आप समझ गए होंगे कि उसके बाद या तो मैं जवाब दूंगी नहीं या दूंगी तो केवल मजे लेने के लिए. अफसोस आप इसे भी नहीं समझ सके. और बता भी दिया कि समझे नहीं. कोई नहीं…आप देते रहें जवाब..हम भी देते रहेंगे..क्योंकि तर्क में सीमाएं होती हैं…कुतर्क में तो कुछ भी बोल सकते हैं…


तो कुतर्कों की श्रेणी में कुतर्क शुरू करते हैं एक बार फिर से आपके महान् उद्धरणों से ही…


जी अवश्य सुनी है..लेकिन किन्ही और अर्थों में, लोगों ने गलत अर्थ दे दिया है इस कहावत को..|

हर बात के दो पहलू होते है। खुशी हुई जानकर…कि आप दूसरे पहलू को भी समझते हैं। पर उससे उसके ‘पहले (एक और पहलू) का अस्तित्व नहीं मिट सकता..उसे अनदेखा नहीं कर सकते..


जो जानता है वो सोचता नहीं है, और जो सोचता है वो जानता नहीं है…!

सूफी जी! सूफी जी! सूफी जी!…उफ्फ! आपसे यही उम्मीद थी..और उसे न तोड़ते हुए उम्मीदों पर खरा उतरे हैं आप! ‘खुशफहमी’ कहते हैं वैसे ऐसे हालात को!…’सोचने’ और ‘जानने’ की प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है। ‘सोचने’ और ‘जानने’ में एक ‘अन्योन्याश्रय संबंध’ है। इसे थोड़ा खींचना पड़ेगा…क्योंकि मुझे पूरा विश्वास है आप इसे समझेंगे नहीं…

पहला, ‘सोचने’ की प्रक्रिया के बिना ‘जानना’ संभव नहीं. क्योंकि ‘सोच’ ‘बुद्धि’ का परिचायक है (अब चाहे कैसी भी बुद्धि हो..छोटी-बड़ी, बुद्धिमान-बेवकूफ)..लेकिन ‘सोच’ सबमें होगी. उसी सोच के अनुसार हम बातें ग्रहण करते हैं.

जहां तक ‘जानने’ का सवाल है..हे ज्ञानी महानुभाव! ‘सोच के बिना तो जानना संभव ही नहीं!’ ‘जिस खाली दिमाग शैतान का घर’ का आपने उल्लेख किया है….वह शैतान भी तो सोच ही है…’ वह सोच ही तो है जो आपमें जानने की कौतूहल पैदा करता है..यह सोच ही तो है जो आपमें ‘थोड़ा-बहुत’ ‘फ्रायड’ और ‘रजनीश’ को पढ़ने का शौक पैदा करता है. यह सोच ही तो है जो आपको 24000 किताबें पढ़कर ‘खुद में ‘सबकुछ जान लेने का वहम’ पैदा करता है. देखिए! हर जगह सोच ही है..सूफी जी (माफ करना भाई, अभी ‘शिप्रा जी’ बोलने की आदत नहीं पड़ी है..एक तो यूं ही किसी का बदला हुआ नाम लेकर उसे बुलाना थोड़ा मुश्किल होता है..उसपर भी अपने ही नाम से किसी और को बुलाना…..थोड़ा अजीब होता है..इसलिए इसकी आदत डालने में थोड़ा वक्त लगेगा…लेकिन 2-3 कमेंट और लिखूं अगर तो शायद आदत पड़ जाए…)! खासकर जहां भी ‘जानने’ (ज्ञान) और ‘जानने की प्रक्रिया (ज्ञान पाने की प्रक्रिया)’ है, वहां ‘सोच’ जरूर है.

हैरानी हो रही है…’सोचकर’…सचमुच! आश्चर्यजनक! बेहद आश्चर्यजनक!…आप तो अपने आप को ज्ञानी बताते हैं! हे दैव! कृपया बताएं कि आपने ‘सोचे बिना’ इतना जाना कैसे?…किस प्रकार इतना ज्ञान अर्जित किया…या कहीं…यह ज्ञान ‘अल्पज्ञान’ तो नहीं!…नहीं, नहीं! अब यह कैसे मैं सोचूं…कि आप ‘अल्पज्ञान’ को ही ‘ज्ञान’ समझ रहे हैं…कि आपको दोनों के बीच का अंतर ही नहीं पता!

खैर, दोनों ही अर्थों में हमारे लिए तो आगे आप बात करने लायक नहीं..आगे पढ़ूं भी कैसे…उतना समय भी कैसे दूं इतना लंबा उत्तर पढ़ने में..जब मुझे पता है कि आप तो बात करने के लायक ही नहीं! अगर आप बिना सोचे ही 24000 किताबें पढ़ सकते हैं…भले ही बिना समझे उसे बस read किया हो. आपकी महानता की तुलना में मैं ‘तुच्छ अज्ञान’ प्राणी कहां मुकाबला कर पाऊंगी. दूसरी सूरत में, अगर आप अल्पज्ञान (बेवकूफी) के शिकार हैं….तो भी ऐसे में हम अपने से ‘छोटे’ लोगों से बात करना अपनी तौहीन समझते हैं….


आगे अपनी (‘ज्ञान भरी’) समझदारी से आप खुद समझ सकते हैं..अब नहीं कह सकती…कि….’समझ तो तुम गए ही होगे!’..क्योंकि आपकी समझ के एक और उथलेपन का अंदाजा हो गया है..फिर भी एक सरसरी निगाह डाली आपके पूरे जवाब पर…सोचा आपने मेरे लिए इतनी मेहनत की है..मेहनत की कद्र करनी चाहिए..साथ ही ‘experience’ के लिए भी…ताकि ‘अल्पज्ञान’ का level समझ सकूं और भविष्य में (अगर जरूरत पड़ी) अल्पज्ञानियों की श्रेणी का वर्गीकरण करते हुए उनसे बात कर सकूं!


खैर, उम्मीद से परे…’बकवाद’ में भी कुछ नया नहीं लिखा आपने…वही सब पुरानी बातें…जिनका जवाब मैं पहले ब्लॉग में ही दे चुकी हूं.

‘अधजल गगरी छलकत जाय’ का पहला पहलू एक बार फिर आपको समझने की जरूरत है. द्सरा पहलू समझा है अच्छी बात है… लेकिन छोड़कर चलना अच्छी बात नहीं..पहले पहला पहलू तो पूरा समझ लीजिए…कहीं 24000 किताबें भी इसी तरह छोड़-छोड़कर तो नहीं पढ़ी?…

कोई नहीं ..’आंख वाला प्रकाश के बारे में भले न सोचे’…लेकिन दिन में भी सोनेवालों को भी दिन गुजर जाने का अफसोस नहीं करना चाहिए. जब जागो तभी सवेरा होता है…इसलिए वो 24000 किताबें अगर आपने ‘छोड़-छोड़कर’ पढ़ी हों और आज भी यही आदत हो…तो कोई बात नहीं ‘ध्यान जी’…50000 पहुंचने से पहले आज से ही इसे पूरा-पूरा पढ़ने की आदत डाल लें..निश्चय ही ‘अल्पज्ञान’ सुधार में लाभ होगा…

लेकिन इसमें एक अंदेशा और है…दरअसल होता क्या है…कि अगर आंखों वाला कोई बहुत वक्त तक आंखें मूंदे रहे तो उसे अंधेरे की आदत पड़ जाती है..आंखें खोलने के बाद प्रकाश के वेग को वह सहन कर पाता..ऐसे वक्त में प्रकाश के वेग को सहन न कर पाने के कारण प्राणी के अंधों सा गिड़ने-पड़ने की संभावना होती है… लेकिन यह बस थोड़े वक्त की बात होती है…उस थोड़े समय के कष्ट को सहन कर वह प्राणी वापस प्रकाश किरणों के साथ सामान्य हो जाता है और एक सामान्य जीवन जीने लगता है..किताबें जल्दी-जल्दी छोड़कर पढ़ने के संबंध में भी यह एक ग्रहणीय बात होगी…शुरुआत में यह बहुत बोरिंग लगेगा लेकिन धीरे-धीरे जब आपको इसके लाभ दिखने लगेंगे तो आपको भी यह अच्छा लगने लगेगा…

**(शायद शब्दों की सीमा के कारण पूरा जवाब एक में पोस्ट नहीं हो रहा…कल बहुत कोशिश की पर हुआ नहीं…इसलिए अब इसे दो पोस्ट में बांटना पड़ रहा…आगे दूसरे पोस्ट में…)

दूसरा पोस्ट:

https://www.jagran.com/blogs/shipraparashar/2013/11/17/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%AB%E0%A5%80-%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%A6-%E0%A4%9C%E0%A5%80-%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%A8-2/

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh