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और…सूफी ध्यान मुहम्मद यहां भी झूठ बोल रहा था!

बढ़ते कदम
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(Last: https://www.jagran.com/blogs/shipraparashar/2013/11/26/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%AB%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%A6-%E0%A4%9D%E0%A5%82%E0%A4%A0-%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%B2-%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%BE-%E0%A4%A5/)

मेरे एक मित्र हैं पटना के

आप उदाहरण देकर अपनी सत्यता साबित करने की कोशिश करते हैं..यह भी आत्मविश्वास की कमी की निशानी है, सूफी जी! मूढ़, जिन्हें खुद पर, अपनी समझ पर, अपने निर्णय पर विश्वास नहीं होता, दूसरों को देखकर निर्णय संपन्न करते हैं.. बुद्धिमान अपनी बुद्धि अनुसार कार्य किया करते हैं.. इसलिए आपके उदाहरण आपकी स्थिति का बयान कर सकते हैं लेकिन किसी को प्रभावित नहीं कर सकते.. गधा भी अपने झुंड में लीडर बन सकता है… कौन सी बड़ी बात है..

sufiji! Sufi ji! Sufi Ji! आपके ध्यान की समाधि से स्व-ज्ञान की प्रकाश किरणें कब फूटेंगी सूफी जी?…


“इस में तुमको इतनी हाय-तौबा मचने की ज़रुरत नहीं है…!!”

सूफी जी… मैंने आपके बारे में तो कुछ कहा ही नहीं…. मैं तो आपकी बातों के बारे में कह रही थी.. आपके बारे में तो आपके हर परमानेंट वक्तव्य पर हम सहमति रखते हैं…. हां, आपकी बातों के विषय में बकवाद जारी है… ताकि आप महाज्ञानी के ज्ञान के समंदर में हम जरा देर के लिए गोते लगा लें…घूमते-फिरते आजकल टाइम पास कर रहे हैं ऐसे ही….


मैंने झूठ बोला था

हा हा हा….मजेदार!

जान पड़ता है आप झूठ बहुत बोलते हो… यूं तो हर बात प्रवचन की तरह बोलते हो.. पता चला किसी ने आपके प्रवचन को आपकी विद्वता मान ली.. आपको गुरु मान लिया…. कल को आप कहेंगे – “मैं तो भाई, झूठ बोल रहा था..!” सारे प्रवचन बेमानी थे….बेचारा…! सूफी ध्यान मुहम्मद का मारा! …. तब कहां जाएगा!


The Tao that can be spoken is not the eternal Tao

सूफी जी! सूफी जी! सूफी जी! आप तो ‘एडम और ईव’ की कहानी समझाने लगे….! भ्राते! हम समझ गए आप 24000 हजार किताबों के पठयिता हैं… कितनी बार और बताऊं! बार-बार सबूत देने की जरूरत नहीं!


‘the mystery …..all wonders’

I Must would like to advise you…Dear Mr. Sufi Dhyan Muhammad…Ji…If you wanna to make yourself wonder, you should make yourself a personality of mysteries.. That is the only way you can catch wondered eyes of others for you.


‘the nameless……heaven and earth’

You are forgetting…you are not Tao…And also you are not nameless Sufi Ji…You are named ‘Sufi Dhyan Muhammad’….. I have just talked about changing your name..The reason can be anything…You might do not like your name…You might feel ashamed of your name….So you wanted to elide yourself behind your ‘changed name’ (mask)….That’s it.


And we are not heaven people…We all are made from destroyable particles, to be on earth for a limited time period as a human being. A Solomon like you must would have known that Human Body is not permanent. If it exists today, it will be destroyed tomorrow/a day. Thus this destroyable body accepts a tradition of being named till it exists on this earth.


Changing the name always have a strong reason. Sometimes it has some negative aspects, sometimes positive. Thus each body when he/she changed his/her name grab attention of eyes…seeking the reasons behind changing that name.


Even ‘Buddha’ whom you believe, have a name ‘Buddha’. This is a different thing that he named ‘Siddhartha’ by the Bodies he was originally originated as a child. And he changed his name as ‘Buddha’ when he got ‘Brahm-Gyan’ under the ‘Bodhi-Vriksha’…..Respected Sufi Muhammad Ji..Buddha (whom you believe) changed his name after getting ‘Brahm-Gyan’..What do you mean to say?…that….you changed your name (keeping ‘Shipra’, replacing your Maternal Name ‘Sufi Dhyan Muhammad’)  when you got ‘Brahm-Gyan’ in Shipra’s Words?…You have already talked about ‘a try to make you change’ (….सुधारने की कोशिश)…Has it really been happened to you? If….This is Amazing! Even when I don’t believe in being amazed, I am Amazed! Are my words really powerful?…Oh! I had never thought on this. Well! Thank You! Thank You! Thank You! Sufi Ji!


If one giving you respect, this is his/her eminence, purity of his/her heart. So if my words have changed you….this is not my/my words’ eminence…this is the purity of your heart…that it found my words as effective as it could make you changed. Thanks! Thanks! Thanks a lot again!


(You have asked me to say you ‘Thanks’…I hope by taking my lots of ‘thanks’…this time….you’ll not have any problem from my honored words to you… I hope you mind it!)


“भगवान ने आज तक नहीं कहा कि वह ‘भगवान’ हैं”… शयद तुमने उपनिषद के ऋषियों की उद्घोष नहीं सुनी…

माना कि आप बड़े ज्ञानी हैं पर मेहनत की कद्र करनी चाहिए.. कभी तो पढ़ लिया करो मेरा लिखा… हालांकि यह आपकी मर्जी है… हमें कोई दिक्कत नहीं..पर बार-बार एक ही जवाब दुहराना पड़ता है… इसलिए सलाह दे रही थी…आपको एक ही चीज बार-बार पूछनी पड़ती है..


अरे भाई, मैंने आपकी तरह 24000 किताबें नहीं पढ़ी, न तुरंत 1 लाख पढ़ने की कूवत है…कि वेद और उपनिषद् पढ़ा हो..आप बच्चे से ऐसी उम्मीद करते हैं!.. आप जैसा महाज्ञानी हर बच्चा नहीं होता सूफी जी!…आपने बचपन में किया होगा…हम नहीं कर सके! तभी तो आज आप खुद को श्रेष्ठ कह रहे हैं…हम नहीं…!


वैसे..आपने समझी नहीं हमारी बात सूफी जी…हम अफसोस की बात कर रहे थे…(फिर से इन्हें पढिए, “जब उन्हें लगता है कि लोग उन्हें कम आंक रहे हैं..वे चीख-चीखकर अपनी महिमा-गान करना चाहते है…वस्तुत: यह उनकी अल्प-बुद्धि होती है कि वे समझ नहीं पाते कि यह उन्हें हास्यास्पद बनाता है…)..जिनमें निराशा झलक रही है…खुद के खुदा न माने जाने की निराशा (आपके शब्द, “हमारी बदकिस्मती ये है कि ‘हम हैं तो ख़ुदा लेकिन सोच-विचार के चक्कर में आ कर बाँदा बने बैठे हैं’…!!”)!!


और जब इतने स्पष्ट, साधारण शब्दों का अर्थ नहीं समझ सके आप सूफी जी… ‘ah-HUM brah-MAHS-mee’ ‘मैं ब्रह्म हूँ’; ‘ANALAHAK, ANALAHAK — I am the God.’ … ऐसे गूढ़ शब्दों का अर्थ कैसे समझ सकते हैं.. जिनमें भगवान खुद को भगवान मानने को नहीं कह रहे, भगवान माने जाने को आतुर नहीं हैं बल्कि किसी मनुष्य को उसके अस्तित्व का बोध कराते हुए उसे ज्ञान दे रहे हैं…उसकी निराशा को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं… निराशा में डूबे ये शब्द नहीं हैं सूफी जी!


तुम मुर्ख हो ये बात आधी सही और पूरी गलत है, और तुम बुद्धिमान हो ये बात आधी गलत और पूरी सही है..!!

धन्यवाद श्रीमान!


Yes..! I am a fallen man.

गिरे हुए पर अक्सर लोग पैर रखकर निकल जाया करते हैं.. आज की दुनिया में कोई उठाने की जहमत नहीं उठाता सूफी जी.. पर अगर वह जल्दी न उठा , पैरों तले कुचलकर उसकी मौत हो जाया करती है… इसलिए गिरा हुआ, गिरा चाहे जिस भी कारण से हो, खुद जितनी जल्दी उठ जाए उतना अच्छा है वरना दुनिया में तो यूं भी लोग दूसरों को गिराने का मौका ढूंढते रहते हैं… एक ‘गिर पड़े’ को कुचलने में देर नहीं लगाती…. गिरकर गिरे रहना बुजदिली है, कायरता है, अक्षमता है… और निरा बेवकूफी…. इससे ज्यादा और कुछ नहीं!


तुम चूक गयी..!!

ह्हा ह्हा हा….

बहुत खूब… हंसाने के लिए धन्यवाद!…

वैसे आपको बता दूं कि मुझे निशानेबाजी का कोइ शौक नहीं…. और मुझे आपका सिर नहीं फोड़ना था सूफी जी… कि मैंने आप पर निशाना लगाया और चूक गयी…

हहा हा… ये अच्छा था…..


ह्हा हा हा… आज आपने ठहाकों का बहुत मौक़ा दिया है…. इसे कहते हैं entertain करना …’पता होता है कि पत्थर मारोगे तो स्वान आवाज करेगा… पर बच्चे फिर भी ऐसा करते हैं… क्यों?…क्योंकि यह उनका एंटरटेनमेंट है.. सूफी जी! हमें आपसे इस जवाब की उम्मीद नहीं थी… आपने एक बार फिर हमें गलत साबित कर दिया…. धन्यवाद आपका!

आपके ध्यान की समाधि से स्व-ज्ञान की प्रकाश किरणें कब फूटेंगी सूफी जी?…


शरीर के बढ़ जानने से चित नहीं बढ़ जाता है

वही तो सूफी जी… आप सब कुछ खुद ही कहते हैं और खुद ही भूल जाते हैं… 24000 किताबें पढ़ कर कोई महाज्ञानी नहीं बन सकता.. हां, किताबों में लिखे शब्दों की लंबी फेरहिस्त बन सकती है… ज्ञान का उससे कोई लेना-देना नहीं.


अज्ञानी मनुष्य का ‘शरीर तो बैल की तरह बढ़ता है लकिन चित में कोई विकास नहीं होता’ और मैं बुद्ध से सहमत हूँ… समझी बच्ची…??

मैं तो समझ गई बड़े भाई साहब! आप कब समझेंगे?

हे ज्ञानी महानुभाव, आपको शायद अब तक ये ज्ञान न हुआ हो … कि ज्ञान निरर्थक है, अर्थ ज्ञान की उपयोगिता का है… ज्ञानी राम भी थे, ज्ञानी रावण भी था… राम ने उसका उपयोग करना चाहा मानव कल्याण के लिए, रावण ने ‘अपने कल्याण’ के लिए…… ज्ञान ने दोनों को अमरता दी…. पर एक का ‘नाम’ हुआ, एक ‘बदनाम’ हुआ…. एक के आगे दुनिया नतमस्तक होती है, एक की चिता जलाती है…


वास्तव में राम और रावण हमारे चित्त के ही दो रूप हैं…. एक जो अच्छा है, दूसरा जो बुरा है… इसलिए शायद कहते हैं कि कोई अच्छा, कोई बुरा नहीं होता…. क्योंकि हर किसी में ईश्वर का वास है.. और हर किसी में राक्षस का भी… दोनों ही रूप ज्ञानी हैं पर दोनों के द्वारा ज्ञान की उपयोगिता में भिन्नता है.. इसलिए ज्ञान का कोई अर्थ नहीं सूफी जी.. केवल इसकी उपयोगिता का अर्थ है… (ऐसा हमारा मानना है… अवश्य ही आप जैसे ज्ञानी का इसपर कोई और ही तर्क होगा… क्योंकि आप तो ‘बदनाम भी हो तो नाम होता है’ पर विश्वास रखते हैं…


तुम सच में बेवकूफ हो

फिर याद दिलाना पड़ेगा…पागल कभी खुद को पागल नहीं कहता, वह हमेशा दूसरों को पागल कहता है.. बेवकूफ खुद बेवकूफ है यह नहीं जानता लेकिन दूसरों को बेवकूफ जरूर कहता है… हास्यास्पद स्थिति होती है यह लोगों के लिए..पर लोगों के हंसने का कारण उसे समझ नहीं आता.. हमारा आशय तो आप समझ ही गए होंगे..(समझ तो तुम गए ही होगे!)


…रोओगी एक दिन…देख लेना..!!!

रोते मूढ़ हैं श्रीमान! बुद्धिमान के पास हौसला होता है.. वे हार का कारण ढूंढते हैं और उसका नाश करते हैं… भले वह अहंकार ही क्यों न हो… पर इसके लिए हौसला चाहिए साहस चाहिए जो कायर के पास नहीं होता… इसलिए वे या तो हारने-हराने की बातें करते हैं या रोने-रुलाने की..


कमजोर लोग रोते हैं सूफी जी… जो अपनी गलती मान नहीं पाते और हार स्वीकार नहीं कर पाते…. अपनी गलती जानने की स्थिति में हम स्वयं ही अपनी हार भी स्वीकार कर लेते हैं और पश्चाताप करने का हौसला भी रखते हैं… साहस चाहिए इसके लिए जो आपके पास नहीं…. आप तो केवल आपकी बातों से असहमति जताने वालों को अपशब्द बोलकर चुप कराना चाहते हैं…. या कुछ यूं कि उससे रेस लगाओ, और मौक़ा मिलते ही टांग खींचकर गिराने की कोशिश करो…. ताकि दुनिया को लगे आप जीत गए… यह कमजोरी की निशानी है… कायर चरित्र है… साहस तो हर स्थिति को स्वीकार करता है… रोता नहीं…. सूफी जी!


अपनी आँखों पर संदेह करना सीखो…!!!

इतना आत्मविश्वास की कमी क्यों है आपमें? अपने आंखों पर संदेह वे करते हैं जिन्हें खुद पर भरोसा नहीं होता! आत्मविशासी ‘संदेह’ नहीं  सद्भावना पर यकीन रखते हैं सूफी जी!… ‘सत् भावना’ जिसमें संदेह का कोई स्थान नहीं श्रीमान!


तुम मेरा तो अपमान कर ही रही हो साथ साथ उन लोगों का भी अपमान कर रही हो जिनसे तुमने कभी कुछ सिखा है

नहीं, हम सीख का सम्मान सीख से कर रहे हैं श्रीमान!


*(मेरे शब्द थे…”हम विश्वास दिलाते हैं कि ‘सीखने की इस प्रक्रिया’ के साथ ही ‘सीख के प्रयोग की प्रक्रिया’ भी अनवरत चलती रहेगी.”)


एक बार फिर आपके ज्ञान का प्रकाश गलत जगह प्रकाशित होकर आपको गलत वस्तुस्थिति का बोध करा रहा है.. अकड़ कर चलने में कांच चुभ जाए तो गलती कांच की नहीं, चलने वाले की होती है…


“आकाश दे रहा था तुमने लेने से मना कर दिया…!! मेरी भी मज़बूरी समझो…!!”

ठुकराना तो हमारी फितरत है… क्योंकि हमारी हर चीज हमारी पसंद की होती है… और हर चीज हमें पसंद नहीं आती! हमारी हर चीज हमारे अंदाज की होनी चाहिए….. और हर चीज में जाहिर है हमारा अंदाज नहीं होगा!… तो हम उसे ठुकरा दिया करते हैं सूफी ध्यान मुहम्मद जी! मेरी भी मज़बूरी समझो…!!

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